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अपने ही बच्चों को निगल जाते हैं मगरमच्छ

जनवाणी
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मगरमच्छ

मगरमच्छ
पानी के भीतर भी एक अलग दुनिया है, जहां जीव-जन्तु अपना जीवन व्यतीत करते हैं। ऐसे ही एक भयानक जीव है मगरमच्छ, इनकी भी एक अलग दुनिया है और इनके बीच भी मनुष्यों की तरह क्षेत्रवाद, एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने, नारी पर एकाधिकार की चेष्टा जैसे तमाम आदतें होती है। मगरमच्छों के बीच क्षेत्रवाद की लड़ाई, मादा पर अधिकार जमाने की कोशिश और अपने ही बच्चों को निगल जाने की प्रवृत्ति के कारण इनकी वंशवृद्धि पर खतरा मंडराता नजर आ रहा है। लोगों को विश्वास हो, न हो लेकिन यह सच है कि नर मगरमच्छ अपने ही बच्चों को निगल जाते हैं और मादा मगरमच्छ ही इनसे अपने बच्चों को बचाकर रखती है।
क्षेत्रफल के हिसाब से देश के सबसे बड़े ग्राम कोटमीसोनार के मगरमच्छ अभ्यारण्य में वर्तमान में 120 वयस्क नर व मादा मगरमच्छ है, जिन्हें गांव सहित शिवरीनारायण, सक्ती, लोहर्सी, रेड़ा, डभरा व अन्य गांवों के कुएं व तालाबों से लाकर यहां के मुड़ा तालाब में संरक्षित किया गया है। तीन वर्ष पूर्व प्रारंभ हुए इस मगरमच्छ अभ्यारण्य में अब जिला ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों से मगरमच्छों को शिफ्टिंग कराया जा रहा है। तालाब के क्षेत्रफल के हिसाब से मगरमच्छों की संख्या लगातार बढ़ने से इनमें अब प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है। वहीं मादा मगरमच्छ से संपर्क बनाने तथा उस पर एकाधिकार जमाने की नीयत से भी मगरमच्छ आपस में भिड़ जाते हैं। एक-दूसरे पर हमला करके मगरमच्छ अपना वर्चस्व कायम रखने का प्रयास करते हैं। यही वजह है कि अप्रैल से जून 2010 तक दो माह में तीन मगरमच्छों की मौत हुई है। मृत मगरमच्छों के शरीर में जगह-जगह चोंट के निशान मिले थे। वर्तमान में संरक्षित मगरमच्छों की संख्या के हिसाब मुड़ा तालाब का क्षेत्रफल कम पड़ रहा है। इस वजह से यहां जनवरी के बाद पानी की समस्या होने लगती है और तालाब का काफी हिस्सा सूख जाता है तथा मार्च के बाद मगरमच्छों का प्रजनन काल शुरू हो जाता है। इस दौरान नर मगरमच्छ काफी उत्तेजना में होते हैं और मादा मगरमच्छ से संपर्क कायम करने के लिए दूसरे मगरमच्छ पर टूट पड़ते है। ऐसे में मगरमच्छों को ज्यादा समय तक बचाए रखना काफी मुश्किल होगा। मगरमच्छ अभ्यारण्य के कर्मचारी बताते हैं कि मादा मगरमच्छ तालाब के बीच बने प्राकृतिक टापू पर अंडे देती है और दिन-रात उसकी रखवाली करती है, जैसे ही अंडों से बच्चें निकलते है और पानी में उतरकर तैरने की कोशिश करते है, तभी भोजन की ताक में बैठे नर मगरमच्छ उन्हें एक झटके में निगल जाते हैं और महज 10 से 15 फीसदी बच्चे ही मादा मगरमच्छ बचा पाती है। खास बात यह है कि बचे छोटे मगरमच्छों पर भी लंबे समय तक नर मगरमच्छों की निगाह रहती है, और वे मौका मिलते ही उसे अपना आहार बना लेते हैं। इस तरह वर्चस्व की लड़ाई के कारण मगरमच्छ अभ्यारण्य कोटमीसोनार में फिलहाल बड़े मगरमच्छ ही देखने को मिल रहे हैं।
विभाग के अधिकारी छोटे मगरमच्छों को संरक्षित करने प्रारंभ से ही प्रयासरत है। इसके लिए तालाब का क्षेत्रफल बढ़ाने तथा गर्मी में पानी की कमीं को दूर करने के लिए अलग से कार्ययोजना तैयार की गई है, जिसके तहत् पिछले दो वर्ष से गर्मी में तालाब के चारों मुहानों की खुदाई कराई जा रही है। साथ ही तालाब में गर्मी के दौरान लबालब पानी भरने के लिए लाखों की लागत से कर्रानाला से पाइप लाइन बिछाने का काम जल्द ही शुरू होने वाला है। इसके लिए टेण्डर की प्रक्रिया पूरी कराई जा चुकी है। इस अभ्यारण्य के अधिकारी-कर्मचारियों का मानना है कि तालाब के क्षेत्रफल बढ़ने तथा पानी की समुचित व्यवस्था होने के बाद छोटे मगरमच्छों को संरक्षित करने का प्रयास सफल हो सकता है।

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