Menu
blogid : 5148 postid : 13

शराबी और पागल थे मरने वाले किसान !

जनवाणी
जनवाणी
  • 23 Posts
  • 19 Comments

 किसान

किसान
मध्यप्रदेश सरकार ने पिछले दिनों विधानसभा में 348 किसानों की मौत का जो रहस्य बताया है, वह चौंकाने वाला है। सरकार ने मरने वाले किसानों में से 65 को शराबी और 35 को पागल करार दिया है। जबकि कुछ किसानों की मौत नपुंसक व अन्य कारणों से होने की जानकारी सरकार ने सदन में रखी है। सरकार के इस जवाब से कई सवाल उठने लगे हैं।
सरकार ने मृत्यु के जो कारण गिनाए हैं, वे कई प्रश्न पैदा कर रहे हैं। क्या भला शराब के नशे का आदी किसान अपनी जान दे सकता है या मरने वाले किसानों में 10 फीसदी मानसिक रूप से विक्षिप्त हो सकते हैं? किसी की नौकरी नहीं लगी, तो उसने इहलीला समाप्त कर ली। पत्नी वियोग, प्रेम प्रसंग और परिजनों की मृत्यु भी सरकार की पड़ताल में किसानों की मृत्यु के कारणों के रूप में उभरी हैं। एक किसान की मौत मामूली पेटदर्द से हुई है। ऐसे और भी किसान हैं, जिनकी मौत सामान्य कारणों से होना बताया गया है। विधानसभा में इस बारे में भी प्रश्न पूछा था कि मरने वाले किसानों पर राष्ट्रीयकृत बैंक, सहकारी बैंक एवं निजी साहूकारों का कितना कर्जा था। इसके उत्तर विभागों से मंगवाकर सत्र के दौरान उपलब्ध कराए जाने की बात गृहमंत्री द्वारा कही गई है। इस पर विपक्ष ने आपत्ति जताई है। इधर किसानों की मौत के मामले में गृहमंत्री की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार भोपाल जिले के अरविंद गौर (18), बुरहानपुर के घनश्याम पुरा निवासी धर्मा (20), इंद्रपाल व परसराम की मौत की वजह शादी नहीं होना था। शाहनगर के किसान राकेश को तो साले की शादी न होने का गम ले डूबा। सरकार ने मृतक किसानों में सागर जिले के थाना देवरी के त्रिलोकी और पटेरा के नन्हे भाई की मौत का कारण कर्ज माना है। वहीं दमोह में तेजगढ़ के नंदकिशोर व कुलुआ के नंदराम की मौत फसल खराब होने के कारण होना स्वीकार किया गया है। विधानसभा में सरकार की ओर से जो तथ्य प्रस्तुत किए गए है, उसके अनुसार मरने वालों में ऐसे किसान भी हैं, जो नपुंसक थे। इसलिए उन्होंने मौत को गले लगा लिया। इनमें झाबुआ के इटावा के बालू किसान का उदाहरण दिया गया है। इसी तहर 5 एकड़ जमीन के सीमान्त कृषक दौलत सिंह ने पढ़ाई में मन न लगने के कारण जहर खा लिया। हाकम सिंह गुर्जर परिवार में बैलगाड़ी के बंटवारे से असंतुष्ट था। हल्के राम को पत्नी शराब पीने के लिए पैसा नहीं देती थी। ऐसे और भी कई कारण गिनाए गए है, लेकिन खुद को जनता का हितैषी बताने वाली मध्यप्रदेश सरकार यह कतई मानने को तैयार नहीं है कि कहीं न कहीं किसानों की आत्महत्या के लिए उनका प्रशासनिक तंत्र काफी हद तक जिम्मेदार है। विधानसभा में राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत किए गए चंद आंकड़ों से ऐसा जाहिर हो रहा है कि सरकार किसानों को खुशहाल बनाने के बजाय किन्ही कारणों से उनकी मौत के बाद आंकड़े गिनाकर खुद को पाक साफ बताने में ज्यादा विश्वास रखती है।

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh