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सांसद निधि में आखिर वृद्धि क्यों?

जनवाणी
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देश के आधे से अधिक सांसदों ने वर्ष 2010-11 में विकास निधि का 35 फीसदी हिस्सा खर्च नहीं किया है। देश में 20 सांसद ऐसे भी है, जिन्होंने तो अपने क्षेत्र के विकास में फूटी कौड़ी खर्च नहीं की है, जबकि कुछ सांसद विकास निधि बांटने में अव्वल है, उन्होंने कमीशनखोरी कर प्राइवेट संस्थाओं को सांसद निधि की राशि रेवड़ी की तरह बांटी है। ऐसे में सांसद निधि की राशि दो करोड़ से बढ़ाकर पांच करोड़ किए जाने का आखिर औचित्य ही क्या है?

सांसद निधि के सही उपयोग से कई क्षेत्रों की तस्वीर बदल गई है, वहीं कई क्षेत्रों में तो सांसद निधि का जमकर दुरूपयोग हुआ है। अपने प्रतिनिधियों के साथ मिलकर सांसदों ने इस निधि में करोड़ों की हेराफेरी की है, जिससे उस क्षेत्र में विकास कार्य नहीं हो सका है। कुछेक सांसदों को छोड़कर बात करें तो कई राज्यों के ज्यादातर सांसद ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी निधि से राशि स्वीकृत करने के एवज में एक निश्चित राशि कमीशन बतौर ली है। काम व राशि के हिसाब से सांसदों ने कमीशन भी तय कर रखा है, जिसे देकर कोई भी व्यक्ति या प्राइवेट संस्था, सांसद निधि से अनुदान प्राप्त कर सकता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण छत्तीसगढ़ राज्य में देखा जा सकता है। यहां जरूरतमंद या सरकारी संस्थाओं को लाभ भले ही न मिले, लेकिन प्राइवेट संस्थाओं को सांसद निधि की राशि आसानी से मिल रही है। भाजपा शासित राज्य होने के बावजूद यहां के ज्यादातर भाजपाई सांसदों ने अपने निधि से सरकारी संस्थाओं के बजाय प्राइवेट स्कूल, कालेज व संगठनों को लाखों रूपए अनुदान दिया है। कई प्राइवेट संस्था तो ऐसे भी है, जिन पर सांसद भारी मेहरबान है और एक सत्र में ही उन्हें तीन-चार बार अनुदान राशि दी गई है। सांसद निधि स्वीकृत करने के पीछे का खेल बहुत लंबा-चौड़ा है। सांसदों ने अपने चहेतों को अनुदान राशि बिना किसी स्वार्थ के खैरात की तरह नहीं दी है, अनुदान राशि स्वीकृत करने के लिए सांसदों ने कुल राशि में से 20 से 30 फीसदी कमीशन लिया है। अनुदान राशि भी उन्हीं लोगों को दी गई है, जिन्होंने कमीशन पहले दिया है। यही नहीं सांसद निधि स्वीकृत कराने के लिए दलाल एक महत्वपूर्ण कड़ी बने हुए हैं, जो सांसदों को ग्राहक ढूंढ़कर देने में अहम् भूमिका निभा रहे हैं। सांसद निधि के दुरुपयोग के कई मामले सामने आए हैं। आंध्र प्रदेश के छह जिलों में तो इस मद में जारी 64 करोड़ रुपए बैंकों में फिक्स्ड डिपॉजिट के रूप में रखकर उनसे ब्याज कमाया जा रहा था। नियमों के मुताबिक यह राशि राष्ट्रीय बैंकों के बचत खाते में ही रखी जा सकती है, ताकि जरूरत पड़ने पर उसे फौरन उपयोग में लाया जा सके। मामले की शिकायत के बाद छानबीन में पाया गया कि कई राजनेताओं ने अपने रिश्तेदारों के स्कूलों और क्लबों तक में सांसद निधि खर्च करवा दी।

चार साल पहले एक स्टिंग ऑपरेशन में कुछ सांसदों को इस योजना के ठेकों में कमिशन की बात करते पकड़ा गया था। इससे स्पष्ट होता है कि बहुत से सांसद इस निधि से व्यक्तिगत हित ही साधना चाहते हैं। अगर वे ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो वे इसके उपयोग में ही हीलाहवाली करते हैं। इस कारण सांसद निधि खर्च ही नहीं हो पाती। पिछले 16 वर्षों में सरकार द्वारा जारी की गई सांसद निधि के 1053.63 करोड़ रुपए खर्च नहीं किए गए। सांसद निधि योजना तो अच्छी है, लेकिन इस योजना के तहत् राशि स्वीकृत करने के पीछे तमाम तरह की खामियां है। इस बात को केन्द्र सरकार भी भलीभांति जानती है, फिर भी आंख बंद किए हुए देश की बर्बादी तमाशा देख रही है। सांसद निधि के दुरूपयोग की शिकायतें छत्तीसगढ़ राज्य ही नहीं बल्कि, देश के कई राज्यों से आए दिन सामने आ रही है, लेकिन एक भी मामले में सांसद के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई है, जिससे साफ जाहिर होता है कि सरकार ही नहीं चाहती कि जनता को उनका जायज हक मिले। यही वजह है कि जनता के लिए सरकार से मिलने वाली राशि का ज्यादातर हिस्सा सांसद व उनके चमचे ही हजम कर जा रहे है, फिर भी सांसदों को निधि के तहत् मिल रहा 2 करोड़ रूपए कम लग रहा था।

केन्द्र सरकार से सांसद बार-बार विकास निधि बढ़ाए जाने की मांग कर रहे थे। राशि बढ़ाने के संबंध में सांसदों का तर्क था कि महंगाई के इस दौर में 2 करोड़ रूपए विकास कार्यो के लिए पर्याप्त नहीं है। राशि कम होने की वजह से क्षेत्र में अपेक्षित विकास कार्य नहीं हो पा रहे हैं। सांसद निधि में वृद्धि को लेकर केन्द्र सरकार लंबे समय से विचार कर रही थी। आखिरकार 7 जुलाई 2011 को कैबिनेट ने सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास निधि योजना के तहत प्रत्येक सांसद को मिलने वाली दो करोड़ की राशि को बढ़ाकर पांच करोड़ करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इससे इस योजना के तहत विकास कार्यों के लिए सांसदों को मिलने वाली राशि प्रतिवर्ष 1580 से बढ़कर 3950 करोड़ रुपए हो जाएगी और सरकारी खजाने पर प्रतिवर्ष 2370 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। कैबिनेट की बैठक में यह भी बताया है कि सांसद विकास निधि योजना के शुरू होने से लेकर 31 मार्च 2011 तक 22490.57 करोड रुपए जारी किए जा चुके हैं। वहीं इस योजना के तहत 31 मार्च 2011 तक 13.87 लाख कार्यों की सिफारिश सांसदों ने की तथा जिला अधिकारियों ने 12.30 लाख कार्यों को मंजूर किया एवं 11.24 लाख कार्य पूरे किए गए। सांसद निधि में वृद्धि करते समय यह स्पष्ट किया गया है कि असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और संघ शासित प्रदेश पुदुचेरी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए इन राज्यों और संघ शासित प्रदेश के सांसद चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक बढ़ी राशि का इस्तेमाल या उस बढ़ी राशि को लेकर किसी प्रकार की घोषणा नहीं कर सकेंगे।

हाल ही में 15 वीं लोकसभा के 2011-11 के कामकाज पर स्वयंसेवी संस्था मास फार अवेयरनेस के वोट फार इंडिया अभियान द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट की बात करें तो देश के आधे से अधिक सांसदों ने सही तरीके से इस निधि का उपयोग नहीं किया है। रिपोर्ट ने यह साबित कर दिया है कि इस निधि का महज 35 फीसदी हिस्सा ही सांसद खर्च कर पाए हैं। देश में 20 सांसद ऐसे भी हैं, जिन्होंने वर्ष के दौरान निधि से एक पैसा भी खर्च नहीं किया है, जिनमें भारतीय जनता पाटी के सांसद शाहनवाज हुसैन तथा कांग्रेस के सीपी जोशी भी शामिल है, जबकि सांसद निधि का कम उपयोग करने वाले सांसदों में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवानी, मुरली मनोहर जोशी, कांग्रेस के प्रणव मुखर्जी, राहुल गांधी, सचिन पायलट, जनता दल यूनाईटेड के शरद यादव, राष्ट्रीय लोक दल के अजीत सिंह के नाम शामिल है। सांसद निधि का मिजोरम के सांसदों ने भरपूर उपयोग किया है। बहरहाल, अगर इस धन का सही उपयोग हुआ होता, तो इतने वर्षों में ग्रामीण भारत की तस्वीर ही बदल चुकी होती, लेकिन यह निधि सार्वजनिक धन की बर्बादी का ही जरिया बनती जा रही है। ऐसे में सांसद निधि की राशि 2 करोड़ से बढ़कर 5 करोड़ हो जाए, या फिर 10 करोड़, सांसदों के कमीशनखोरी की भूख मिटने वाली नहीं है और न ही देश के पिछले क्षेत्रों में विकास के कोई बड़े कार्य होने की उम्मीद है।

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