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35 फीसदी भारतीय निरक्षर

जनवाणी
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है, वहीं महिला वयस्क साक्षरता दर महज 54.5 फीसदी है।
आजादी के बाद भारत देश में वर्ष 1950 के दौरान साक्षरता की दर 18 फीसदी थी, जो 1991 में बढ़कर 52 फीसदी हो गई। इसके बाद साक्षरता की दर 2001 में 65 फीसदी तक पहुंची, जो कि भारत सरकार के सार्थक प्रयासों से संभव हुआ और अब तो शत् प्रतिशत् साक्षर करने के लिए योजनाएं बनाई जा रही है। केन्द्र व राज्य सरकारें, शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों को साक्षर करने के लिए गैर सरकारी संस्थाओं व समाज सेवी संस्थाओं की मदद ले रही है। सन् 2001 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या के केवल 54 प्रतिशत महिलाएं ही पढना लिखना जानती थी, जबकि पुरूषों में 75 प्रतिशत पढ़े लिखे थे। 15 वर्ष से ऊपर की व्यस्क महिलाओं में 47.82 प्रतिशत पढ़ लिख सकती थी। देश के विभिन्न हिस्सों में प्रौढ़ महिला साक्षरता का स्तर 15 से 94 प्रतिशत् तक फर्क लिए हुए था। यह एक ऐसा अनुपात था, जिसे पूरा करने के लिए विशेष योजना बनानी पड़ी। देश के 365 जिलों में महिला साक्षरता दर 50 प्रतिशत से कम है। अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की महिलाओं में 41.90 प्रतिशत तथा 34.76 प्रतिशत पढना लिखना जानती है। सन् 2001 में पुरूष साक्षरता 78.85 प्रतिशत और महिला साक्षरता 54.16 प्रतिशत था, जबकि केरल की साक्षरता 90.92 प्रतिशत थी, जिसमें 94.20 प्रतिशत पुरूष 87.86 महिलाएं साक्षर थी। वर्ष 2001 की जनगणना ने सकारात्मक संकेत प्रदान किए। महिला साक्षरता दर में 14.38 फीसदी की वृद्धि हुई जबकि पुरूष साक्षरता दर में 11.13 फीसदी की वृद्धि हुई। इससे स्पष्ट होता है कि साक्षरता के क्षेत्र में महिला पुरूष का अंतर समाप्त होता जा रहा है। वहीं प्राथमिक स्तर पर जहां 1950-51 में स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या 19,200,000 थी, जो 2001-02 में बढ़कर 109,800,000 हो गई। आजादी के बाद से साक्षरता दर 1950-51 के 18.33 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 64.1 फीसदी हो गई। देश में साक्षरता दर बढने का संकेत मिलता है, लेकिन जनसंख्या वृद्धि इतनी अधिक है कि हर दशक में निरक्षरों की कुल संख्या बढ़ती ही चली गई। बावजूद इसके 1991 से 2001 का दशक ऐसी अवधि रही, जब पहली बार निरक्षरों की संख्या में कमी आई। इस दशक में बिहार, नगालैंड और मणिपुर ही मात्र ऐसे राज्य थे, जहां निरक्षरों की कुल संख्या में वृद्धि हुइर्, जबकि उनके प्रतिशत में कमी आई। 2001 की जनगणना में बिहार ही एकमात्र ऐसा राज्य था, जहां आधी से अधिक आबादी यानी 53 प्रतिशत जनता निरक्षर थी। मगर दूसरा पहलू यह भी है कि राज्य में 60 प्रतिशत पुरूष साक्षर थे।
देश की 70 प्रतिशत निरक्षर आबादी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, आंध्रप्रदेश और पश्चिम बंगाल में निवास करती है। आधी से थोड़ी सी कम निरक्षर आबादी उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में है। शिक्षा का अधिकार और मध्यान्ह भोजन शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति हुई है, लेकिन वयस्क निरक्षरता के अलावा बाल निरक्षरता भी बहुत ज्यादा है। एक अनुमान के अनुसार देश में करीब 10 करोड़ बच्चे स्कूलों से बाहर हैं। इनमें से बड़ी संख्या बालश्रमिक और अपंग बच्चों की हैं। ’भारत विकास रिपोर्ट, 2002’ में ’भौतिक अवसरंचना की तरह सामाजिक अवसरंचना महत्वपूर्ण’ विषय पर जानकारी दी गई है, जिसके मुताबिक 2001 की जनगणना के अनुसार 65 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ ही देश में 29 करोड़ 60 लाख निरक्षर हैं, जो आजादी के समय की 27 करोड़ की जनसंख्या के आसपास हैं। भारत में साक्षरता दर की वृद्धि के लिए कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। राष्ट्रीय साक्षरता अभियान इनमें से एक है, जिसे 5 मई, 1988 में तकनीकी अभियान के रूप में 15-35 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करने के लिए आरंभ किया गया था। इस आयु वर्ग पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया, क्योंकि यह वर्ग इस समय अपने जीवन के उत्पादन एवं प्रजनन के दौर से गुजर रहा है। राष्ट्रीय साक्षरता नीति 1986 को वर्ष 1992 में संशोधित किया गया था और राष्ट्रीय साक्षरता अभियान को देश से निरक्षरता समाप्त करने के तीन हथियारों में से एक हथियार के रूप में मान्यता दी गई। अन्य दो हथियार प्राथमिक शिक्षा का सर्वसुलभीकरण तथा अनौपचारिक शिक्षा है। इस अभियान का उद्देश्य 15-35 वर्ष की आयु वर्ग के आठ करोड़ निरक्षर लोगों को साक्षर बनाना था। वर्ष 1991 तक 3 करोड़ तथा वर्ष 2001 तक 5 करोड़ लोगों को साक्षर बनाने का लक्ष्य रखा गया था, हालांकि वर्ष 2001 तक अभियान के द्वारा 75 प्रतिशत लोगों को साक्षर बनाया गया है। इसी तरह देश से निरक्षरता को समाप्त करने के लिए संपूर्ण साक्षरता अभियान राष्ट्रीय साक्षरता अभियान की एक प्रमुख रणनीति है। इस कार्यक्रम में कुछ सकारात्मक गुण है, जैसे, क्षेत्र विशेष पर आधारित, समयबद्धता, सहभागिता, लागत में सस्ता और परिणाम देने वाला। यह अभियान पूर्व निर्धारित साक्षरता को प्राप्त करने पर जोर देता हैं। इस अभियान को सभी के लिए नामांकन तथा विद्यालय में उपस्थिति, प्रतिरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तीकरण आदि जैसी अन्य गतिविधियों से जोड़ा गया है। संपूर्ण साक्षरता अभियान की अवधि 12 से 18 महीने मानी गई है, जिसमें से आधी अवधि तैयारी के लिए और बाकी की आधी वास्तविक अध्यापन एवं पढ़ाई के लिए है। संपूर्ण साक्षरता अभियान की तीन चरण वाली प्रबंधन संरचना में जिलो से लेकर ग्रामीण स्तर तक की समितियां हैं, इनमें जिला साक्षरता समितियों को उप-समितियों के द्वारा समर्थन दिया जा रहा है। वहीं इनकी अध्यक्षता सामान्यतः जिला कलेक्टरों के द्वारा की जा रही है। संपूर्ण साक्षरता अभियान के समापन पर जिला साक्षरता समितियों के द्वारा साक्षरता उपरांत कार्यक्रमों को एक साल के लिए लागू किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के बड़े उद्देश्यों में से एक उद्देश्य साक्षर लोगों को यह सिखाना है, कि वे अपनी साक्षरता का प्रयोग समस्याओं को हल करने के लिए कैसे एक उपकरण के रूप में कर सकते हैं, ताकि उनकी पढ़ाई जीवन एवं कार्य के लिए उपयोगी बन सके।

साक्षरता तथा वयस्क शिक्षा के लिए अकादमी सहायता उपलब्ध कराने देशभर में राज्य संसाधन केंद्रों की स्थापना की गई है। वर्ष 1988 में जब से राष्ट्रीय साक्षरता अभियान को लागू किया गया, तब से 26 राज्य संसाधन केंद्रों को स्थापित किया गया है। इनमें से अधिकतर राज्य संसाधन केंद्रों को स्वयंसेवी एंजंसियों के द्वारा और कुछ को विश्वविद्यालयों के जरिए चलाया जा रहा है। प्रशासनिक कार्यों के लिए राज्य संसाधन केंद्रों को वर्गों में बांटा गया है। बहरहाल, साक्षरता दर में वृद्धि को लेकर तमाम् योजनाएं संचालित करने के बावजूद देश के कई राज्यों में साक्षरता की दर अभी भी कम है। खासकर साक्षरता दर के मामले में महिलाओं का प्रतिशत अभी भी खास उपर नहीं उठ पाया है। ऐसे में सरकार को अपनी योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर विशेष सर्तकता बरतनी चाहिए।

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